दायरे से बाहर - OUT OF THE FRAME
दायरे से बाहर मनुष्य हमेशा से संदेहशील प्राणी रहा है। प्रकृति ने उसे जो भी ऊर्जा के स्रोत दिए -जल अग्नि वायु धरती आदि उनमें अपने संदेह व जिज्ञासा को जोड़कर उसने नए-नए आविष्कार किए। इसी संदेह की सीड़ी को थाम कर मनुष्य हर ढांचे को तोड़कर, हर दायरे से ऊपर उठकर अनंत उपलब्धियॉंं पा सकता है।